ज़िन्दगी के मोहल्ले में घर बदलते रहते हैं. पड़ोसी बदलते रहते हैं. कई बार कोई नया पड़ोसी आ जाता है... कभी कोई सालों से साथ रह रहा शख्स कहीं और जा बसता है.आप ग़रीब हो गए तो मोहल्ले की पिछली गली में जा बसे.... फलां साहब अमीर हो गए तो मोहल्ले की बड़ी सड़क पर चले आए.मगर कोई कहीं जा बसे या कोई यहाँ आ बसे, पड़ोसी तो पड़ोसी ही होते हैं.... किसी नुक्कड़ पर मिलेंगे तो सलाम ज़रुर करेंगे....!ये पन्ना उन्ही पडोसियों के बारे में है....

Friday, May 2, 2008

kya likhoon?

yaar doston ke baare mein likhna khasa mushkil hai...phir bhi jaldi hii kuch likhna padega